डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

हम अपने दैनिक जीवन में अक्सरहां यह प्रयास करते हैं कि कोई भी अनैतिक कार्य नहीं करें। बच्चों को भी हम पारिवारिक व स्कूली स्तर पर नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं और बहुत हद तक बच्चें इन्हीं नैतिकता रूपी सद्गुणों के आधार पर अपने जीवन का अनुशरण करते हैं। हमारे आसपास का पर्यावरण भी इन्हीं सद्गुणों में से एक है और मौजूदा दौर में सर्वाधिक प्रासंगिक मानव मूल्यों में से एक है। अतः अन्य मानव मूल्यों की तरह ही पर्यावरण संरक्षण व सुरक्षा के बारे में भी बच्चों में परिवार व स्कूल के स्तर पर सीखाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के पूर्व प्रमुख एरिक सॉल्हिम ने भी कहा है कि जलवायु परिवर्तन को लोगों को सामान्य भाषा में प्रस्तुत को किए जाने की जरूरत है जो यह समझा सके कि उनके दैनिक जीवन के लिए इसके क्या मायने हैं। यह सही भी है। अभी भी पर्यावरण एवं उससे जुड़ी चिंताओं को बौद्धिक वर्गों की जुगाली समझी जाती है और पर्यावरण प्रदूषण या जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जो प्रतिकूल परिघटनाएं सामने आ रही हैं उसे आम लोग अभी भी बहुत हद तक प्राकृतिक या दैवी प्रकोप के आईने से ही देखते हैं। विडंबना तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कई बार कारखानों के प्रदूषण को अवसर के रूप में देखते हैं। उदाहरण के तौर पर, बिहार के एक गांव में पास के चीनी मिल की सफाई से निकले अपशिष्टों को नदी में बहाया जाता था जिनमें रसायन भी मिले होते थे। इन रासायनिक अपशिष्टों की वजह से नदी की मछलियां ऊपर आ जाती थीं और इन मछलियों को पकड़ने के लिए गांव वालों में होड़ मच जाती थी। वे इस बात से अनजान होते थे कि ये मछलियां प्रदूषण की वजह से ऊपर आईं थीं या मर गईं थीं। स्पष्ट है कि इसका दोहरा प्रभाव सामने आता था; नदी पारितंत्र का बिगड़ना व मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव। यह घटना उपर्युक्त अभिकथन की अभिपुष्टि करता है कि पर्यावरण व उसके प्रभावों तथा संरक्षण के प्रति जागरूकता का अभाव है। उपर्युक्त परिघटना इस बात का भी प्रमाण है कि पर्यावरण संरक्षण व संवद्धर्धन को आम लोगों तक उनकी ही भाषा में पहुंचाने की जरूरत क्यों है। 
‘भूगोल और आप’ का नव वर्ष का यह अंक भी पर्यावरण को ही समर्पित है। इसमें पर्यावरण से जुड़े अत्याधुनिक शब्दावलियों को समेटने का प्रयत्न किया गया है जो परीक्षार्थियों के लिए अति महत्वपूर्ण तो है ही, आम पाठक वर्ग के लिए भी समान रूप से उपयोगी है। चूंकि पर्यावरण से जुड़े शब्दावलियों की संख्या काफी अधिक है इसलिए अति उपयोगी व प्रासंगिक टर्म्स ही इसमें लिए गए हैं, आगे के अंकों में भी इस श्रृंखला को जारी रखी जाएगी। इस अंक में हाल में चर्चित मुद्दों पर शोधपरक व विश्लेषणपरक आलेख भी समाहित किए गए हैं जैसे कि दिल्ली वायु प्रदूषण, मृदा अपरदन मापन तकनीकें, असम नागरिकता पंजीकरण मुद्दा,  सटीक कृषि, भारत में कृषि विकास, सतत विकास इत्यादि।  
इस पत्रिका को और अधिक परीक्षोपयोगी व सभी पाठक वर्गों के लिए प्रासंगिक बनाने के लिए कला-संस्कृति, भारत की प्रजातीय विविधता, नवीनतम पहलें जैसे पहलुओं को भी शामिल किया जा रहा है। दरअसल हमारा प्रयास इस पत्रिका को ‘सामान्य अध्ययन की संपूर्ण पत्रिका’ बनाने की है। इस क्रम में इसमें परिवर्तन किए जा रहे हैं और आगे भी जारी रहेगा। इसमें आपका सुझाव काफी मायने रखता है जिसकी हमें प्रतीक्षा रहती है। इस आशा के साथ कि इस पत्रिका को और अधिक परीक्षोपयोगी बनाने में आप अपना फीडबैक हमेशा देते रहेंगे, नव वर्ष की शुभकामनाएं।