डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक, परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

प्रिय पाठकों,

विरोध्, विपक्ष, असहमति इत्यादि जैसे शब्द वस्तुतः लोकतंत्रा के आधार हैं और भारत को स्वतंत्राता भी तो असहयोग, सविनय अवज्ञा, सत्याग्रह के बल पर मिली है जिसकी प्रकृति अहिंसात्मक रही है। किसी मुद्दे पर सहमति बनाने या मतैक्य का प्रयास किया जा सकता है परंतु जरूरी नहीं है कि इसे प्राप्त किया जा सके और यदि कुछ स्वर, भले ही एक ही स्वर क्यों न हो,  विरोध् के आते हैं तो इसका सम्मान किया जाना चाहिए। अहिंसक विरोध् व असहमति के अस्त्रा हैं प्रदर्शन व धरना, और ये लोकतंत्रा के खतरे नहीं वरन् इसकी विशिष्टताएं हैं, पर हां यदि यह मुद्दों तक ही केंद्रित रहे। यदि इस विरोध्-प्रदर्शन की आड़ में कुछ अन्य निहित स्वार्थ शामिल होते हैं तो वह छिपती भी नहीं है और फिर यह लोगों का समर्थन भी खो देता है। साथ ही ये विरोध्-प्रदर्शन, ध्रने तभी तक जायज हैं जब तक इससे आम लोगों को विशेष परेशानी नहीं हो और लोगों की आजीविका प्रभावित नहीं हो रहा हो। यहां हम बात किसान आंदोलन की कर रहे हैं। किसानों, विशेष रूप से पंजाब एवं हरियाणा के किसानों को लगता है कि केंद्र सरकार का तीनों कृषि कानून उनके अस्तित्व को समाप्त कर सकता है। किसानों की मूल चिंता न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं कृषि में कॉर्पोरेट के समावेश से है। किसान यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि वे जो पफसल उपजा रहे हैं उसका उचित मूल्य उन्हें मिलती रहे। यदि किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य मिलेगा ही नहीं तो भला वे खेती क्यों करेंगे। वैसे यह सही है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर देश का केवल 6 से 7 प्रतिशत किसान ही अपनी उपज बेच पाता है और इनमें भी लगभग 90 प्रतिशत किसान पंजाब के हैं। जाहिर है कृषि कानूनों के खिलापफ विरोध् के स्वर भी पंजाब में ही तल्ख है। किसानों के विरोध् के पश्चात सरकार भी वार्ता कर रही है और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उन्हें आश्वासन भी दिया गया है। परंतु इन सबके बीच कुछ बाहरी शक्तियां भी अपना हित साध्ने में लगे हैं जिसकी आशंका भी रही है। कनाडा के प्रधनमंत्रा का पंजाब के किसानों के समर्थन में टिप्पणियां करना इसी की उपज दिखती है। ऐसा माना जाता है कि कनाडा में उन्हें उन लोगों का समर्थन प्राप्त है जो पंजाब में उग्रवाद को पफैलाने में विश्वास रखते हैं। यही कारण है कि वे जब भारत की यात्रा पर आये थे तब न केवल भारत सरकार वरन् पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्रा ने भी उनके स्वागत में विशेष दिलचस्पी नहीं दिखायी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कनाडा वही देश है जो केर्न्स समूह के सदस्य के रूप में विश्व व्यापार संगठन में भारत द्वारा किसानों को दी जा रही विभिन्न सब्सिडी का विरोध् करता रहा है। केर्न्स समूह कृषि निर्यातक देशों का संगठन है जो अपनी कृषि उपजों को भारत जैसे विशाल बाजार में सस्ते दामों पर पहुंचाना चाहता है। इस समूह के सदस्य के रूप में कनाडा मांग करता रहा है कि भारत कृषि आयातों पर प्रशुल्क समाप्त करे जो वह अपने किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए लगा रखा है। स्पष्ट है कि जहां उसे अपने हित की बात दिख रही है वहां भारत के किसानों के हितों को ताख पर रख दे रहा है वहीं राजनीतिक लाभ के लिए उन्हीं किसानों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य के पक्ष में किये जा रहे आंदोलन को अपना समर्थन दिखा रहा है। यह ‘पाखंडपन’ नहीं तो क्या है? भारत एक संप्रभू देश है और वह अपने आंतरिक मामले को खुद सुलझाने में सक्षम है। बेहतर है कि कनाडा अपने यहां भारत विरोध्ी ताकतों पर लगाम लगाये। 

‘भूगोल और आप’ का यह अंक वार्षिकी के रूप में प्रस्तुत की गई है। यह है तो विशेषांक पर आप इसे ‘परीक्षांक’ भी कह सकते हैं। इसमें विगत एक वर्ष के मुद्दों एवं घटनाओं का संकलन किया गया है। इस पत्रिका की प्रकृति के अनुरूप ही इस विशेषांक में पर्यावरण, विज्ञान व भूगोल विकास पर विशेष बल है जो अन्यत्रा प्राप्त नहीं होता। आशा है यह संकलन आपको पसंद आएगा।